
दिल की जमीं पे बनायीं
कब्रगाह अपनी
दफन है इसमें मेरी यादें जख्मीं
आ जा कहीं से तू..एक बार सोढियाँ
दे मुझे आकर फिर से वो दर्दफैमियाँ
तेरे मेरे दरमयां हों इश्कफैमियाँ….
खण्ड्हर से भी गुजरती ठण्डी हवायें
तू भी मुझमें गुजर ले के इश्क की वफायें
आ जा कहीं से तू एक बार सोढ़ियाँ
दिखा जा फिर से वो ख्वाबफैमियाँ
तेरे मेरे दरमयां हों इश्कफैमियां…
मेरे जिस्म से झांकती हैं रूह की निगाहें
तूने तोड़ा ऐसे बची नहीं आहें
फिरभी, आजा कहीं से एक बार सौढ़ियाँ
लूट ही ले आकर मेरी ये खुशफैमियाँ
तेरे मेरे दरमयां हों शायद इश्कफैमियाँ
इश्कफैमियाँ हो.. इश्कफैमियाँ….हो
– आकांक्षा सक्सेना
( लेखिका चर्चित ब्लॉगर है।)